हम दोषी हैं अनेक गलतियों और अनेक भूलों के।
लेकिन हमारा सर्वाधिक बुरा अपराध बच्चों को परित्यागना है।
जीवन के मूलस्रोत को उपेक्षित करना।
बहुत सी चीजें जो हम चाहते हैं,प्रतीक्षा कर सकती है।
बच्चा नहीं कर सकता।यह सही समय है जब उसकी हड्डियां बन रही हैं।
उसका खून बन रहा है।
और उसकी इन्द्रियां विकसित हो रही हैं।
उसके लिए हम उत्तर नहीं दे सकते 'कल'।
उसका नाम है 'आज'।
() चिली की कवियित्री गबरिएला मिस्टराल (1889-1957) जिन्हें सन् 1945 में साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार मिला था।इस कविता में निहित मानवीय भावनाएं और विचार हमारेलिए अनुकरणीय ही नही एक सबक भी है ......!
सत्य की पैनी धार से पूर्ण रचना,
ReplyDeleteबहुत अच्छी....
shukriyaa,
ReplyDeleteis adbut kriti se ru ba ru karane kaa,
mere blog par bhi aaiye.
danyavaad
जीवन के मूलस्रोत को उपेक्षित करना।
ReplyDeleteबहुत सी चीजें जो हम चाहते हैं,प्रतीक्षा कर सकती है।
बच्चा नहीं कर सकता।यह सही समय है जब उसकी हड्डियां बन रही हैं।
उसका खून बन रहा है।
और उसकी इन्द्रियां विकसित हो रही हैं।
उसके लिए हम उत्तर नहीं दे सकते 'कल'।
उसका नाम है 'आज'।
कोई भी पंक्ति, कोई भी शब्द छोड़ नही पाया मैं उधृत करने से...बहुत ही हृदयस्पर्शी भावः पिरोया है आपने अपने शब्दों में.
अच्छी रचना कहीं भी हो मन को उद्वेलित करती है !बहुत खूब पूर्णिमा जी !निरंतर लिखती रहें !
ReplyDeletePoornima ji,
ReplyDeleteBahut hee achchhee rachana ke sath apne blog kee shuruat kee hai.Badhai.
Poonam
आने वाले कल को
ReplyDeleteआज ही मिटाना
उसे बीता हुआ कल बनाना
प्रकृति को नकारना
एक जघन्य अपराध है
और इस अपराधी को रोका नहीं जा सका है
दण्ड तो दूर की बात है
सच
आपकी रचना में कुछ और बात है
चिटठा जगत में स्वागतम !
ReplyDeleteबच्चे आज की खुशी और कल के भविष्य हैं, देश और समाज के|जिस समाज में बच्चों की एक बड़ी संख्या का ये हाल होगा, उसका भविष्य ?
वे परिस्थितयां जो बच्चों को खेल पढ़ाई और शिक्षा से वंचित कराती हैं, और वे लोग जो इसके लिए जिम्मेदार हैं,
जो सक्षम होते हुए भी इनके लिए इमानदार प्रयास नहीं करना चाहते
अपने को सभ्य कहलवाने के हकदार नहीं हैं,
यह शर्मनाक और दुखद है |
बहुत सुंदरअभिव्यक्ति सशक्त रचना, सार्थक लेखन
ReplyDeleteअत्यन्त मार्मिक एवं ह्रदयस्पर्शी पंक्तियाँ हैं !
ReplyDeleteसीधे दिल के भीतर घर करती हैं !
१९४५ में लिखी गई कविता
आज भी कितनी सामयिक है !
इतनी अच्छी कविता से रु-ब-रू
कराने के लिए आपका आभार !
मेरी शुभकामनाएं
bahut sunder kavita
ReplyDeleteaaj bhi samayik
ek samwedansheel rachana padhwane k liye dhanyabad.
ReplyDelete---------------------------------"VISHAL"
bahut hi adbhut.........likhne wali ko mera poorjosh aur garmjosh salaam.........!!
ReplyDeleteबस यूँ ही चलता रहे यह क्रम .....चिटठा जगत में स्वागतम !
ReplyDeleteबहुत खूब पूर्णिमा जी !निरंतर लिखती रहें !
ReplyDeleteसुन्दर भावानुवाद. बधाई.
ReplyDeleteगणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाऐं.
क्या प्रतिक्रिया लिखूं...... कुछ समझ में नही आ रहा है.
ReplyDeleteबस दिल को छूते हुए निकल गयी हैं ये पंक्तियाँ .
(अगर आप बिना किसी हर्रे फिटकरी के कोरियन लैंगुएज सीखना चाहते हैं तो मेरे ब्लॉग http://koreanacademy.blogspot.com/ पर आएं |)
सुन्दर ब्लॉग...सुन्दर रचना...बधाई !!
ReplyDelete-----------------------------------
60 वें गणतंत्र दिवस के पावन-पर्व पर आपको ढेरों शुभकामनायें !! ''शब्द-शिखर'' पर ''लोक चेतना में स्वाधीनता की लय" के माध्यम से इसे महसूस करें और अपनी राय दें !!!
Poornima ji ,
ReplyDeleteapke blog par bahut hee achchhee aur aj ke samayik yatharth ko chitrit karne valee kavita padhee.badhai.main bhee bachchon ke hit men ek chhotee koshish kar raha hoon.jise ap mere blog par dekh saktee hain.
Hemant Kumar
hmmmmmmmm good post
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bahut hi accha likha hai ,aapne.
ReplyDeleteशब्द वैचारिक मंथन के लिए प्रेरित करते हैं । भाव और विचार की अच्छी प्रस्तुति तथा भाषा की जनपक्षधरता लेखन को प्रखरता प्रदान कर रहे हैं ।
ReplyDeleteमैने अपने ब्लाग पर एक लेख लिखा है-आत्मविश्वास के सहारे जीतें जिंदगी की जंग-समय हो तो इसे पढ़ें और कमेंट भी दें-
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achha anubhav raha aapke blog par aane ka.....kirpya mere blog par bhi padharen..
ReplyDeleteJai Ho Magalmay Ho
dhanyaapka blog bahoot achcha laga. vichar hi manav ke jeevan darshan hote hai.isee tarah likhate rahe .dhanyabad
ReplyDeleteरसात्मक और सुंदर अभिव्यक्ति
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