भारतीय सभ्यता -संस्कृति से प्रभावित होकर कभी मार्टिन लूथर किंग जूनियर ने कहा था कि " व्यक्ति जिसका अन्तर-मन प्रशांत हो , कभी भी सच्चे मायनों में हिंसा नही अपना सकता । मुझे उम्मीद है कि पूरब साइड में चांदनी की सरजमीं कहलाये जाने वाले भारत का उजाला शान्ति की चेतना को वैसे ही दूर तक पहुंचायेगा , जैसे चाँद की शीतल किरणें दोपहर की चिलचिलाती गरमी से राहत पहुंचाती है । " सचमुच गांधी का यह देश निर्विकार रूप से विनम्रता का देश है । रवीन्द्र प्रभात जी को साधुवाद इस बेहतरीन ग़ज़ल के लिए ।
रवीन्द्र प्रभात जी की इस ग़ज़ल को पढ़ने के बाद उनकी अन्य ग़ज़लों को पढ़ने की जिज्ञासा उत्पन्न होती चली गयी , पढ़ते -पढ़ते गांधी से जुडी उनकी एक और ग़ज़ल पर मेरी निगाहें ठिठक गयी । कौन करता है यकीन अब गांधी के उपदेश में ?
रवीन्द्र प्रभात जी की ग़ज़लों का आकर्षण ऐसा है कि मैं ग़ज़ल - दर-ग़ज़ल बांचती चली गयी और प्यास बनी की बनी रह गयी । शुक्रिया प्रभात जी ! आपने अच्छी-अच्छी ग़ज़लों - गीतों - कविताओं और व्यंग्य से सजाया है अपनी परिकल्पना को .....पर मुझे आपकी ग़ज़लों ने ज्यादा प्रभावित किया !
परिकल्पना पर मेरी अन्य पसंदीदा ग़ज़ल-
खेल खेल सा खेल खिलाड़ी
कुछ मतलब की बातें शराब के बहाने
घर को हीं कश्मीर बना
हर तरफ़ संत्रास अब मैं क्या करुँ आशा ?
मोगैंबो खुश हुआ !
जीवन का उल्लास हमारे पास मियाँ
आज अपने-आप में क्या हो गया है आदमी
देश को अब चाहिय खुशनुमा सा एक प्रभात ......
एक गज़लकार के रूप में रविन्द्र प्रभात जी नि:संदेह अनुकरणीय हैं .
ReplyDeleteउनकी गज़लें समसामयिक होती है ......आपका प्रस्तुतीकरण अत्यन्त सुंदर है !
हाँ , बहुत ही बढिया लिखते है प्रभात जी !
ReplyDeleteप्रभात जी की ग़ज़ल वाकई जोश से लबरेज है ,
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